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क्ष॒पो रा॑जन्नु॒त त्मनाग्ने॒ वस्तो॑रु॒तोषसः॑। स ति॑ग्मजम्भ र॒क्षसो॑ दह॒ प्रति॑ ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्ष॒पः। रा॒ज॒न्। उ॒त। त्मना॑। अग्ने॑। वस्तोः॑। उ॒त। उ॒षसः॑। सः। ति॒ग्म॒ज॒म्भेति॑ तिग्मऽजम्भ। र॒क्षसः॑। द॒ह॒। प्रति॑ ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तिग्मजम्भ) तीक्ष्ण अवयवों के चलानेवाले (राजन्) प्रकाशमान (अग्ने) विद्वान् जन ! (सः) सो पूर्वोक्त गुणयुक्त आप जैसे तीक्ष्ण तेजयुक्त अग्नि (क्षपः) रात्रियों (उत) और (वस्तोः) दिन के (उत) ही (उषसः) प्रभात और सायंकाल के प्रकाश को उत्पन्न करता है, वैसे (त्मना) तीक्ष्णस्वभावयुक्त अपने आत्मा से (रक्षसः) दुष्ट जनों को रात्रि के समान (प्रतिदह) निश्चय करके भस्म कीजिये ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जैसे प्रभात, दिन और रात्रि का निमित्त अग्नि को जानते हैं, वैसे राजा न्याय के प्रकाश और अन्याय की निवृत्ति का हेतु है, ऐसा जानें ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(क्षपः) रात्रीः (राजन्) राजमान (उत) (त्मना) आत्मना। अत्र छान्दसो वर्णलोपः [अ०वा०८.२.२५] इत्याकारलोपः (अग्ने) विद्वन् ! (वस्तोः) दिनम् (उत) (उषसः) प्रातः सायं समयान् (सः) उक्तः (तिग्मजम्भ) तिग्मं तीव्रं जम्भो गात्रविनामनं यस्मात् तत्संबुद्धौ (रक्षसः) दुष्टान् (दह) भस्मीकुरु (प्रति) प्रत्यक्षे ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे तिग्मजम्भ राजन्नग्ने ! स त्वं यथा तीक्ष्णतेजा अग्निः क्षप उत वस्तोरुतोषसो जनयति तथा सुशिक्षां जनय रक्षसस्तम इव तीव्रत्मना प्रति दह ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा प्रभातस्य दिनस्य रात्रेश्च निमित्तमग्निर्विज्ञायते तथा राजा न्यायप्रकाशस्यान्यायनिवृत्तेश्च हेतुरस्तीति वेद्यम् ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नी हा दिवस आणि रात्र होण्याचे निमित्त आहे तसा राजा हा न्यायी असून अन्यायाचे निवारण करणारा असला पाहिजे हे माणसांनी जाणावे.